Love Poetry of Habeeb Musvi

Love Poetry of Habeeb Musvi
नामहबीब मूसवी
अंग्रेज़ी नामHabeeb Musvi

तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान

मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है

लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से

ग़ुर्बत बस अब तरीक़-ए-मोहब्बत को क़त्अ कर

चाँदनी छुपती है तकयों के तले आँखों में ख़्वाब

बुतान-ए-सर्व-क़ामत की मोहब्बत में न फल पाया

बरहमन शैख़ को कर दे निगाह-ए-नाज़ उस बुत की

बहुत दिनों में वो आए हैं वस्ल की शब है

वो यूँ शक्ल-ए-तर्ज़-ए-बयाँ खींचते हैं

वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी

मेहर-ओ-उल्फ़त से मआल-ए-तहज़ीब

लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले

कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए

किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले

हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है

है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़

गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है

दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस

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