Sharab Poetry of Habeeb Musvi

Sharab Poetry of Habeeb Musvi
नामहबीब मूसवी
अंग्रेज़ी नामHabeeb Musvi

थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या

तेज़ी-ए-बादा कुजा तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार कुजा

पिला साक़ी मय-ए-गुल-रंग फिर काली घटा आई

मोहतसिब तू ने किया गर जाम-ए-सहबा पाश पाश

मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है

मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं

क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा

ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े

जा सके न मस्जिद तक जम्अ' थे बहुत ज़ाहिद

फ़स्ल-ए-गुल आई उठा अब्र चली सर्द हुआ

वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए

शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी

क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़

मेहर-ओ-उल्फ़त से मआल-ए-तहज़ीब

लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है

फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे

देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है

दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ

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