जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें
दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ
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शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं
कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए
मौलाना
कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए
जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ
दियार-ए-सब्ज़ा ओ गुल से निकल कर
14-अगस्त
दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं