जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
बगिया लहूलुहान
सब्ज़ा-ज़ारों में गुज़र था अपना
सलाम लोगो
और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
अश्क आँखों में अब हैं आए से
महताब-सिफ़त लोग यहाँ ख़ाक-बसर हैं
शेर से शाइरी से डरते हैं
हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में
घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी
कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ