वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं
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उठने को तो उठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
हर मुसीबत थी मुझे ताज़ा पयाम-ए-आफ़ियत
दिल-ए-सरशार मिरा चश्म-ए-सियह-मस्त तिरी
तुम्हें भी मालूम हो हक़ीक़त कुछ अपनी रंगीं-अदाइयों की
ज़बाँ पे हर्फ़-ए-शिकायत अरे मआज़-अल्लाह
उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
वो निगाहें जो दिल-ए-महज़ूँ में पिन्हाँ हो गईं
ग़ज़ब है ये एहसास वारस्तगी का
अब वो पीरी में कहाँ अहद-ए-जवानी की उमंग
उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में
महव-ए-कमाल-ए-आरज़ू मुझ को बना के भूल जा