उठूँ दहशत से ता महफ़िल से उस की
इताब उस का है हर इक हम-नशीं पर
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(693) Peoples Rate This
हम इश्क़ सिवा कम हैं किसी नाम से वाक़िफ़
माख़ूज़ होगे शैख़-ए-रिया-कार रोज़-ए-हश्र
दुनिया का व दीं का हम को क्या होश
ना-ख़लफ़ बस-कि उठी इश्क़ ओ जुनूँ की औलाद
आए हैं हम जहाँ में ग़म ले कर
ज़ाहिदा किस हुस्न-ए-गंदुम-गूँ पे है तेरी निगाह
बे-वफ़ा गो मिले न तू मुझ को
हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर
गर इश्क़ से वाक़िफ़ मरे महबूब न होता
कम-तर या बेशतर गए हम
करे आशिक़ पे वो बेदाद जितना उस का जी चाहे