दुनिया का व दीं का हम को क्या होश
मस्त आए व बे-ख़बर गए हम
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है रश्क-ए-वस्ल से ग़म-ए-दिलदार ही भला
राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल
इश्क़ में ख़्वाब का ख़याल किसे
गुल कभू हम को दिखाती है कभी सर्व-ओ-समन
ना-ख़लफ़ बस-कि उठी इश्क़ ओ जुनूँ की औलाद
बुरा न माने तो इक बात पूछता हूँ मैं
हुस्न को उस के ख़त का दाग़ लगा
अज़ीज़ो तुम न कुछ उस को कहो हुआ सो हुआ
सज्दा-गाह-ए-बरहमन और शैख़ हैं दैर-ओ-हरम
दामन है मेरा दश्त का दामान दूसरा
सीना तो ढूँड लिया मुत्तसिल अपना हम ने
मय-कशी में रखते हैं हम मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब