माख़ूज़ होगे शैख़-ए-रिया-कार रोज़-ए-हश्र
पढ़ते हो तुम अज़ाब की आयात बे-तरह
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बे-वफ़ा गो मिले न तू मुझ को
सज्दा-गाह-ए-बरहमन और शैख़ हैं दैर-ओ-हरम
राह-रस्ते में तू यूँ रहता है आ कर हम से मिल
न छुटा हाथ से यक लहज़ा गरेबाँ मेरा
खेलें आपस में परी-चेहरा जहाँ ज़ुल्फ़ें खोल
मय-कशी में रखते हैं हम मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब
करे आशिक़ पे वो बेदाद जितना उस का जी चाहे
अब तुझ से फिरा ये दिल-ए-नाकाम हमारा
साक़िया पैहम पिला दे मुझ को माला-माल जाम
हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर
साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश