Heart Broken Poetry of Hasrat Mohani

Heart Broken Poetry of Hasrat Mohani
नामहसरत मोहानी
अंग्रेज़ी नामHasrat Mohani
जन्म की तारीख1875
मौत की तिथि1951
जन्म स्थानDelhi

उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी

राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़-राह-ए-सितम

फिर और तग़ाफ़ुल का सबब क्या है ख़ुदाया

नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती

मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल

खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अतन

हक़ीक़त खुल गई 'हसरत' तिरे तर्क-ए-मोहब्बत की

है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी

ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह

बर्क़ को अब्र के दामन में छुपा देखा है

बद-गुमाँ आप हैं क्यूँ आप से शिकवा है किसे

अल्लाह-री जिस्म-ए-यार की ख़ूबी कि ख़ुद-ब-ख़ुद

ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र

याद कर वो दिन कि तेरा कोई सौदाई न था

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते

उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों

उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है

सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम

सितम हो जाए तम्हीद-ए-करम ऐसा भी होता है

रोग दिल को लगा गईं आँखें

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम

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