Khawab Poetry of Hasrat Mohani

Khawab Poetry of Hasrat Mohani
नामहसरत मोहानी
अंग्रेज़ी नामHasrat Mohani
जन्म की तारीख1875
मौत की तिथि1951
जन्म स्थानDelhi

रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह

इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया

आप को आता रहा मेरे सताने का ख़याल

आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न

वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं

उस बुत के पुजारी हैं मुसलमान हज़ारों

उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं

हम ने किस दिन तिरे कूचे में गुज़ारा न किया

हर हाल में रहा जो तिरा आसरा मुझे

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया

बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

और भी हो गए बेगाना वो ग़फ़लत कर के

आप ने क़द्र कुछ न की दिल की

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