Bewafa Poetry (page 4)
है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम
इफ़्फ़त अब्बास
रू-ब-रू उन के कोई हर्फ़ अदा क्या करते
इब्राहीम अश्क
न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा
इब्राहीम अश्क
मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो
इब्राहीम अश्क
अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं
इब्राहीम अश्क
कुछ भी तो अपने पास नहीं जुज़-मता-ए-दिल
इब्न-ए-सफ़ी
सब माया है
इब्न-ए-इंशा
चाँद के तमन्नाई
इब्न-ए-इंशा
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
इब्न-ए-इंशा
यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ
हुरमतुल इकराम
क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए
हिमायत अली शाएर
रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था
हिलाल फ़रीद
वो ये कहते हैं ज़माने की तमन्ना मैं हूँ
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
सितम तीर-ए-निगाह-ए-दिलरुबा था
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो
हीरा लाल फ़लक देहलवी
जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं
हयात वारसी
ख़ाल-ए-रुख़्सार को दाग़-ए-मह-ए-कामिल बाँधा
हयात मदरासी
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
हातिम अली मेहर
न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए
हातिम अली मेहर
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
हातिम अली मेहर
जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा
हातिम अली मेहर
बुतों का सामना है और मैं हूँ
हातिम अली मेहर
बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा
हातिम अली मेहर
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
हसरत मोहानी
उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ
हसरत मोहानी
राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़-राह-ए-सितम
हसरत मोहानी
वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
हसरत मोहानी
उन को रुस्वा मुझे ख़राब न कर
हसरत मोहानी