Sad Poetry (page 186)
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
बक़ा बलूच
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
बक़ा बलूच
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
बक़ा बलूच
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
बक़ा बलूच
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
बक़ा बलूच
कैसा लम्हा आन पड़ा है
बक़ा बलूच
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
बक़ा बलूच
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
बक़ा बलूच
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
बनो ताहिरा सईद
बीसवीं सदी के हम शाइ'र-ए-परेशाँ हैं
बनो ताहिरा सईद
हार जाएगी यक़ीनन तीरगी
बलवान सिंह आज़र
चलूँगा कब तलक तन्हा सफ़र में
बलवान सिंह आज़र
सच है या फिर मुग़ालता है मुझे
बलवान सिंह आज़र
रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही
बलवान सिंह आज़र
पाँव मेरा फिर पड़ा है दश्त में
बलवान सिंह आज़र
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
बलवान सिंह आज़र
क्यूँ छुपाते हो किधर जाना है
बलवान सिंह आज़र
जब कोई टीस दिल दुखाती है
बलवान सिंह आज़र
गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
बलवान सिंह आज़र
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
बलवान सिंह आज़र
ये ज़र्द बच्चे
बलराज कोमल
तहलील
बलराज कोमल
शायद
बलराज कोमल
सर-ए-राहगुज़र एक मंज़र
बलराज कोमल
सर्द, तारीक रात
बलराज कोमल
इत्तिफ़ाक़
बलराज कोमल
एक पुर-असरार सदा
बलराज कोमल
ड्रग स्टोर
बलराज कोमल
दीवारें
बलराज कोमल
दीदा-ए-तर
बलराज कोमल