Social Poetry (page 8)
ये तो सच है कि टूटे फूटे हैं
असग़र मेहदी होश
प्यासा रहा मैं बाला-क़दी के फ़रेब में
असग़र मेहदी होश
जला जला के दिए पास पास रखते हैं
असग़र मेहदी होश
हमेशा तंग रहा मुझ पे ज़िंदगी का लिबास
असग़र मेहदी होश
ख़ुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए-दीवाना बरसों से
असग़र गोंडवी
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
असग़र गोंडवी
हम-साई
असद जाफ़री
बस कि इक लम्स की उम्मीद पे वारे हुए हैं
अरशद जमाल 'सारिम'
खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए
अरशद अली ख़ान क़लक़
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
अरशद अली ख़ान क़लक़
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
अरशद अली ख़ान क़लक़
इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली
अरशद अली ख़ान क़लक़
ताज-ए-ज़र्रीं न कोई मसनद-ए-शाही माँगूँ
अरमान नज्मी
जब भी दुश्मन बन के इस ने वार किया
आरिफ़ शफ़ीक़
लिबास गर्द का और जिस्म नूर का निकला
अक़ील शादाब
वो जानता है उस की दलीलों में दम नहीं
अक़ील नोमानी
बशारत हो कि अब मुझ सा कोई पागल न आएगा
अनवर शऊर
क्या होना मुमकिन है
अनवर सेन रॉय
इज़ाफ़ी ज़रूरतों के लिए एक नज़्म
अनवर सेन रॉय
ब'अद-अज़-मर्ग
अनवर सेन रॉय
साँसों में मिल गई तिरी साँसों की बास थी
अनवर सदीद
इंहिराफ़
अंजुम सलीमी
लगा के दिल कोई कुछ पल अमीर रहता है
अनीस अब्र
एक नज़्म
अनीस नागी
पर्दे में इस बदन के छुपें राज़ किस तरह
अमजद इस्लाम अमजद
जो दिन था एक मुसीबत तो रात भारी थी
अमजद इस्लाम अमजद
ख़्वाब जो बिखर गए
आमिर उस्मानी
ज़मीं के जिस्म पे यूँ यूरिश-ए-क़ज़ा कब तक
आमिर नज़र
सहर की जुम्बिश क़द-ए-मतानत पे रह गई थी
आमिर नज़र
ये गर्द है मिरी आँखों में किन ज़मानों की
अमीर हम्ज़ा साक़िब