Social Poetry (page 7)
जी-दारो! दोज़ख़ की हवा में किस की मोहब्बत जलती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
जिन को दीवार-ओ-दर भी ढक न सके
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
किस क़दर कम-असास हैं कुछ लोग
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ख़याल आता है अक्सर उतार फेंकूँ बदन
अज़ीम हैदर सय्यद
ज़मीं की ख़ाक तो अफ़्लाक से ज़ियादा है
अज़ीम हैदर सय्यद
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
अज़हर फ़राग़
कुछ और हो भी तो राएगाँ है
अय्यूब ख़ावर
गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
अतीक़ुल्लाह
मुसव्विर का हाथ
अतहर राज़
पहुँचा दिया उमीद को तूफ़ान-ए-यास तक
अतहर नासिक
मिस्ल-ए-बाद-ए-सबा तेरे कूचे में ऐ जान-ए-जाँ आए हैं
अतहर नफ़ीस
वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
अतीक़ अंज़र
जुदाई हद से बढ़ी तो विसाल हो ही गया
अतीक़ इलाहाबादी
गुमाँ के तन पे यक़ीं का लिबास रहने दो
अतीब एजाज़
कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा
अताउर्रहमान जमील
ख़ाना-ब-दोश
असरार-उल-हक़ मजाज़
इधर भी आ
असरार-उल-हक़ मजाज़
बरहनगी का मुदावा कोई लिबास न था
असरार ज़ैदी
ग़ज़ल-पैमाई
असरार जामई
लिबास-ए-गुल में वो ख़ुशबू के ध्यान से निकला
असलम बदर
मौजूद जो नहीं वही देखा बना हुआ
आसिम वास्ती
मिलने को तुझ से दिल तो मिरा बे-क़रार है
आसिफ़ुद्दौला
क़ैदी रिहा हुए थे पहन कर नए लिबास
अासिफ़ साक़िब
बज़्म-ए-सुख़न को आप की दिल-गीर चल पड़े
अासिफ़ साक़िब
घर वापसी
अशोक लाल
उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी
अशफ़ाक़ अंजुम
मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ
अशफ़ाक़ अंजुम
पीला था चाँद और शजर बे-लिबास थे
अशफ़ाक़ नासिर