Social Poetry (page 4)
ज़ीस्त का ख़ाली कटोरा आप ही भर जाएगा
ग़ुलाम हुसैन अयाज़
किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से
ग़ुलाम भीक नैरंग
बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं
ग़नी एजाज़
ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी
ग़ालिब
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
ग़ालिब
यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का
ग़ालिब
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
ग़ालिब
मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
ग़ालिब
जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार
ग़ालिब
है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल
ग़ालिब
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
ग़ालिब
ये सच नहीं कि तमाज़त से डर गई है नदी
फ़िरदौस गयावी
जिन की ज़िंदगी दामन तक है बेचारे फ़रज़ाने हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
आ के हो जा बे-लिबास
फ़ज़्ल ताबिश
अस्बाब-ए-ज़िंदगी की हर इक चीज़ है गराँ
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
सवाल सख़्त था दरिया के पार उतर जाना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
और क्या मुझ से कोई साहिब-नज़र ले जाएगा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है
फ़े सीन एजाज़
मैं ने माँ का लिबास जब पहना
फ़ातिमा हसन
कौन ख़्वाहिश करे कि और जिए
फ़ातिमा हसन
कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला
फ़ारूक़ शफ़क़
हर नए मोड़ धूप का सहरा
फ़ारूक़ मुज़्तर
जो रहा यूँ ही सलामत मिरा जज़्ब-ए-वालहाना
फ़ारूक़ बाँसपारी
सब्ज़ मौसम की रिफ़ाक़त उस का कारोबार है
फ़ारूक़ अंजुम
जब भी मिला वो टूट के हम से मिला तो है
फ़ारूक़ अंजुम
अपने दरिया की प्यास
फ़ारिग़ बुख़ारी
था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी
फ़रहत नदीम हुमायूँ
ना-रसाई
फ़रहत एहसास