Social Poetry (page 6)
एक और शराबी शाम
दर्शिका वसानी
लिबास-ए-फ़क़्र में हम को जो ख़ाकसार मिले
दर्शन सिंह
गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था
दानियाल तरीर
भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले
दाग़ देहलवी
ख़ामुशी में क़यास मेरा है
बबल्स होरा सबा
जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे
बिमल कृष्ण अश्क
कभी तो सामने आ बे-लिबास हो कर भी
भवेश दिलशाद
मैं क्या बताऊँ कैसी परेशानियों में हूँ
भारत भूषण पन्त
दरिया ने कल जो चुप का लिबादा पहन लिया
बेदिल हैदरी
अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है
बेदम शाह वारसी
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
बशीर बद्र
तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
बशीर बद्र
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
बशीर बद्र
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
बशीर बद्र
सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे
बशीर बद्र
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
बशीर बद्र
आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
बशीर बद्र
प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह
बशर नवाज़
क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए
बशर नवाज़
कभी तो याद के गुल-दान में सजाऊँ उसे
बाक़र नक़वी
गोडो
बाक़र मेहदी
फ़ज़ा का रंग निखरता दिखाई देता है
अज़रा वहीद
ख़ाली बेंच
अज़रा अब्बास
दिन
अज़रा अब्बास
अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है
अज़ीज़ तमन्नाई
मैं छुप रहा हूँ कि जाने किस दम
अज़ीज़ नबील
बिखेरता है क़यास मुझ को
अज़ीज़ नबील
ये फ़ज़ा-ए-साज़-ओ-मुज़रिब ये हुजूम-ताज-ए-दाराँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है
अज़ीज़ हामिद मदनी
लिखी हुई जो तबाही है उस से क्या जाता
अज़ीज़ हामिद मदनी