उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1606) Peoples Rate This
न जाने कब वो पलट आएँ दर खुला रखना
किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है
वो मिला मुझ को न जाने ख़ोल कैसा ओढ़ कर
सराए छोड़ के वो फिर कभी नहीं आया
दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में
अपनी मजबूरी बताता रहा रो कर मुझ को
चाँद फिर तारों की उजली रेज़गारी दे गया
मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे
मैं शीशा क्यूँ न बना आदमी हुआ क्यूँकर
इस क़दर भी तो न जज़्बात पे क़ाबू रक्खो
ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे