एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है