ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
छोटे काम का बड़ा नतीजा
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
पानी में है आग का लगाना दुश्वार
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
रात
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
अस्लाफ़ का हिस्सा था अगर नाम-ओ-नुमूद