मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
पानी में है आग का लगाना दुश्वार
नक़्क़ाश से मुमकिन है कि हो नक़्श ख़िलाफ़
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
सच कहो
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
दुनिया का न खा फ़रेब वीराँ है ये
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम