मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
बरसात
एक वक़्त में एक काम
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
नसीहत
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
मुलम्मा की अँगूठी
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है