अस्लाफ़ का हिस्सा था अगर नाम-ओ-नुमूद
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
चिड़िया के बच्चे
कछवा और ख़रगोश
सच कहो
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है