पानी में है आग का लगाना दुश्वार
अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत
अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-महमूद
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
रात
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
सच कहो
नक़्क़ाश से मुमकिन है कि हो नक़्श ख़िलाफ़