ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
बरसात
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
मुलम्मा की अँगूठी
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
सच कहो