दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
अपने आईना-ए-तमन्ना में
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
चंद लम्हों को तेरे आने से
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़