यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
यूँ ही रूठी हुई सी एक नज़र
उम्र भर मैं ने तुझ पे नाज़ किया
तू किसी दिन तो नाज़ कर मुझ पर
Faiz Ahmad Faiz
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तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
अपने आईना-ए-तमन्ना में
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
तितली कोई बे-तरह भटक कर
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम