तितली कोई बे-तरह भटक कर
फिर फूल की सम्त उड़ रही है
हिर-फिर के मगर तिरी ही जानिब
इस दिल की निगाह मुड़ रही है
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कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अपने आईना-ए-तमन्ना में
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में