मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
दिल के दिल ही में रह गए अरमान
फिर भी इस बात का यक़ीं है मुझे
ना-मुकम्मल नहीं मिरा रूमान
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ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
चंद लम्हों को तेरे आने से
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
तितली कोई बे-तरह भटक कर
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं