तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
तेरे आरिज़ पे ये शगुफ़्ता गुलाब
रंग-ए-जाम-ए-शराब पर मत जा
ये तो शर्मा गई है तुझ से शराब
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हाए ये तेरे हिज्र का आलम
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
तितली कोई बे-तरह भटक कर