याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
डाल देता है दिल में इक हलचल
दौड़ते में किसी हसीना का
जैसे आ जाए पाँव में आँचल
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सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
चंद लम्हों को तेरे आने से
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर