यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
रह रह के उमीद के उजाले
छुप छुप के कोई शरीर लड़की
आईने का अक्स जैसे डाले
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आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
अपने आईना-ए-तमन्ना में
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
तितली कोई बे-तरह भटक कर
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
एक कम-सिन हसीन लड़की का
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें