किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
इस क़दर जल्द टूट जाएगा
क्या ख़बर थी कि हाथ लगते ही
फूल का रंग छूट जाएगा
Gulzar
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कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम