कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
तेरी बे-ए'तिनाइयों को मुआफ़
अक़्ल ने पूछना बहुत चाहा
कह सका दिल न कुछ भी तेरे ख़िलाफ़
Rahat Indori
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कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या