सर में तकमील का था इक सौदा
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
शर्म दहशत झिझक परेशानी
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
पसीने से मिरे अब तो ये रुमाल