हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
बरसात है दिल डस रहा है पानी
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी