पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
मुबहम पयाम
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी