साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर