शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
एक मुद्दत सितम उठाने पर
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है