चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
महर-ए-आलम-ताब की ताबिंदगी
मेरे दिल को बख़्शती है इक सकूँ
'नक़्श' ये पिछले पहर की चाँदनी
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शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ