है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
ग़म-ए-हस्ती के पाएमालों में
दोस्तों के हँसी उड़ाने पर
उलझनें जिस तरह ख़यालों में
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मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
फिर किसी बात का ख़याल आया
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
एक मुद्दत सितम उठाने पर
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए