दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
रूह में बे-कली सी पाता हूँ
याद आती है जब तिरी ऐ दोस्त
जाने क्यूँ ख़ुद को भूल जाता हूँ
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अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
फिर किसी बात का ख़याल आया
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ज़िंदगी इस तरह भटकती है