अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
भूल सकते नहीं ये अहल-ए-नज़र
ख़ूब हँसता हूँ मुस्कुराता हूँ
दोस्तों की सितम-ज़रीफ़ी पर
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रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
एक मुद्दत सितम उठाने पर
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को