जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
वो हसीं आँख मुस्कुराती है
मेरे सीने में जाने क्यूँ हमदम
एक बिजली सी दौड़ जाती है
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मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
फिर किसी बात का ख़याल आया
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए