मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
आज फिर तब्अ की रवानी में
सुब्ह-दम जिस तरह कँवल का फूल
यक-ब-यक खिल उठा हो पानी में
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वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को