हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ज़ख़्म खाता हूँ दर्द सहता हूँ
मौत से हम-कनार हो कर भी
ज़िंदगी के क़रीब रहता हूँ
Jaun Eliya
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है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
हाए ये सादगी ओ पुरकारी