शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
जिस नज़र से सुकून होता है
बाज़ औक़ात उस नज़र से ही
आरज़ूओं का ख़ून होता है
Jaun Eliya
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Parveen Shakir
Rahat Indori
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Allama Iqbal
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मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
एक मुद्दत सितम उठाने पर
फिर किसी बात का ख़याल आया
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे