एक मुद्दत सितम उठाने पर
जब नज़र कामयाब होती है
हुस्न-ए-रंगीं की वो पशेमानी
आप अपना जवाब होती है
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शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
फिर किसी बात का ख़याल आया
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ