फिर किसी बात का ख़याल आया
इक हसीं रात का ख़याल आया
जिस ने सरशार कर दिया दिल को
उस मुलाक़ात का ख़याल आया
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शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
एक मुद्दत सितम उठाने पर
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में