रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उम्मीद
उलझे उलझे हसीं ख़यालों में
हँस रहा था गुलाब का इक फूल
यूँ किसी के सियाह बालों में
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चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
ज़िंदगी इस तरह भटकती है