जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
एक मुद्दत सितम उठाने पर